सबद भाग (8) / कन्हैया लाल सेठिया
71.
जग थारो तू जगत रो
उणियांरो साख्यात
पण कुण है किण री छायां
आ अचरज री बात।
72.
अणगिण दिवळा तप करै
आखी आखी रात
बो सगळो तप अवतरै
सूरज बण परभात
73.
सुख में दुख में एक सा
आंसू नाखै नैण
समभावी अंतस भंवूं
कुण बैरी कुण सैण !
74.
जको लडावै फूल नै
जळ स्यूं करै किलोळ
बो ही ज्यावै बायरो
थोरां नै पंपोळ
75.
जतो समावै लै बतो
मत कर लालच और
पाकी दाडम फाटगी
निज रै रस रै जोर
76.
चावै संसार बण सकै
चावै तो भगवान
आखी सिसटी में इस्यो
तू ही खिमतावन
77.
हेलो कोई रो सुण्यां
गयो हुवै तू भाज
तो थारो हेलो सुण्या
आसी सैण समाज
78.
जकी जीभ रै लागज्या
पर निन्दा रो रोग
करै कुपथ बा स्वादवष
कोनी हुवै निरोग
79.
दीसै थोड़ो, घणकरो
पण है मिनख अदीठ
आतम तत जाण्यां बिन्यां
कद अणभूतै दीठ ?
80.
भर तू निज रै चूंठिया
जद जद आवै नींद
बगत गयां फेरा टळयां
पिसतासी तू बींद