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अस्थि के अंकुर. / केदारनाथ अग्रवाल

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मौन में जो गीत तुमने भर दिए थे

कभी गाए हुए बीते किसी युग में

वे पुरानी हड्डियों से निकल आए

फोड़ कनखे

नए युग के मौर बन कर