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डाकी काळ / कन्हैया लाल सेठिया

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ऊभग्यो
जा’र
अब कै
ठेठ
दिल्ली री
कांकड़ में
धाड़वी काळ,
दे’र
रैकारो
बकारै निलजो
कुण है
इस्यो
जको खोसै
म्हारा झींटा ?
मोसै म्हारो घेंटू ?
सुण’र दकाळ
पड़ग्यो सोपो
बणगी बणराय
ठूंठ,
सुणीजै डकारां
गिटग्यो डाकी
गायां, गोधा’र ऊंठ,
दापळग्या डरता
खेतां में
बायोड़ा बीज,
खोस लियो,
सावण रै
माथै बांध्योड़ो
जरी रै पल्ले रो
मोळियो,
फेंक दियो
तोड़’र
आभै रो राम धणख,
‘कुण है बो
जको ले ज्यावै
टोर’र
म्हारै मुंडागै स्यूं
म्हरो भख’ ?
है कोई
गायड़मल
जको
झालै
इण डाकी रो
ओ हेलो ?