भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मऊ माळवै जाय / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:24, 24 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आतां ही
आखातीज
करी करसो
संभाळ
हळां री
अंवंरया बीज,
दिखै सूतै नै
सपनां में
जेठू बाजरो’र
मोबी बेटा,
जागतै नै
सिरकतो
सूखो अषाढ,
कोनी करी
देख’र
तिसायै
आषाढ नै
गिगनार
आंख चिनीक ही
गुदमैळी
भूलगी
पूछणो गोरड्यां
‘लूआं नै
कठै जावस्यो बाळण्यां
पावस धर पड़ियांह’ ?
आई ओला लेती
डरूं फरूं सी हुयोड़ी
सरवणीये री तीज
देख’र
कोनी खुल्या
तीजणियां रा कंठ
खाली बाजतो रयो
चूड़ी बाजै पर गीत
‘सावण आवण कह गया, ’
दोरा उठै
ओळमै स्यू डरतै
बापड़ै भादूड़ै रा पग,
करै आपसरी में
मिनख लुगायां बतलावण
कियां बणसी
साव सूखी धूळ स्यूं
आठम नै गोगाजी,
कोनी लागै
अबाकाळै धोख,
चाणचक
टूटग्यो सोपो
भरीजग्या सुना मारग
आखर टुरगी
गांव छोड’र
भूखां मरती मऊ
माळवै कानी !