भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिट्टां री कलम / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:27, 24 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कानी
आया
इण साल
गिगनार री
आंख में
प्रीत रा
बादळिया सपनां
उतरगी चेतै स्यूं
थिरकती झमकती
सोनल बीजळी
मे’ल’र भूलग्यो
उतांवळ में कठेई
आप रो सुरंगो
रामधणख
बिन्यां आयां
धणी नै सपनो
कोनी कर सकी
अणभूती
हियै री साच
धण धरती
रैगी बण’र
बापड़ी
अहिल्या
कोनी लिख सकी
सिट्टां री कलम स्यूं
मतीरां रै
छन्दा में
हरियाळी रो
मधरो गीत,
केठा’स कांई गूंथ्यो
इस्यो जाळ
काफरिया काळ’क
पड़ग्यो
धरती’र आभै रै
मनां में
आंतरो !