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सतवाणी (7) / कन्हैया लाल सेठिया

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61.
काळा धोळा बादळा
ढकै जिंयां गिगनार,
बंधै इंयां पुन पाप स्यूं
आतम तत अविकार,

62.
अकथ साच नै कथ सकै
रळा सबद री झूठ,
बाईजै तसवार कद
बिन्यां लगायां मूठ ?

63.
रतन साथ ले ज्याण नै
मेल्या बुगची बांध,
ओ ही समज्या तो घणो
कयो देणियां कांध,

64.
नहीं सकै दिवळो भुला
तम थारो उपगार,
थारै कारण नेह दै
मतलबियो संसार,

65.
कद इंच्छ्यो तू जलम नै
इंच्छै कद तू मौत ?
तू परबस गलवाद कर
मत कर चोड़ै पोत,

66.
फिरै फिरकली जद हुवै
चिमठी में कीं सांच,
झूठ नहीं गत दे सकै,
लै तू परतख जांच,

67.
बांस हुवै डीघा घणां
पण थोथा के सार ?
तुलसी हुवै बिलांग री
मांदां रो उपचार,

68.
काम हुवै थारै कर्यो
ओ है कूड़ विचार,
कता अलख सागै जुड़ै
जणां पड़ै बो पार,

69.
आंधो धुंऊं विकार रो
दीठ ज्यायली चूक,
चेता बुझती चेतणा
दै विवेक री फूंक,

70.
देस, काळ नै देख पण
आ लै निसचै जाण,
सत रै मारग जा सकै
नहीं असत रै पाण,