भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सतवाणी (12) / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

111.
मोसै मिणियो साच रो
पोवै साव अलूण,
कीड़ीनगरै नै जका
पाळै लेज्या चून,
112.
माटी मा नारायणी
माटी बिरम महेष,
माटी रिध सिध गोरजा
माटी देव गणेष,

113.
जलमै षतपद कंसलो
हाथी रै पग च्यार,
सरप अपग संसार री
लीला रो के पार ?

114.
अमी सरीसी मसि सरस
कलम मती नस नाख,
असबद नेड़ो सबद री
जोत जींवती राख,

115.
गावै जिण रै गीत नै
अणपढ कंठां धार,
काळजयी बो कलम स्यूं
दियो काळ नै मार,

116.
हूंता खोड़ा हिरणियां
सुणतां पाण दकाळ,
बां रो मिणियो मोसग्यो
दिन दोपारां काळ,

117.
नींद मुंद्यै नैणां दिखै
ज्यूं मन रा जंजाळ,
भासै अंतर दीठ नै
भव रा तीन्यूं काळ,

118.
खिण रै लारै खिण गई
खिण आगै खिण फेर,
नई जकी नै भूलज्या
आवै जकी अंवेर,
119.
नैण मुंडागै पंथ बो
चाल्यां लखसी पीठ,
दीठ पीठ दोन्यूं दिख्यां
मिलसी मन रो ईठ,

120.
कर लै छीणी नै कलम
उन्डा सबद उकेर,
निमळी लिखत भुजाणसी
काळ आंगळी फेर,