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सतवाणी (30) / कन्हैया लाल सेठिया

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291.
चिणगारी कोनी सकै
लगा लौह में आग,
काठ हुयै सूती अलख
परस्यां ज्यासी जाग,

292.
कोनी कीं पल्लै पड़ै
कोई नै आराध,
अकल सरीरां ऊपजै
निज आतम नै साध,

293.
ध्यान ध्याण रो मंत्र है
घूंटी कोनी ध्यान,
ध्यासी बो ही ध्यागसी
परिगह नै गिष मान,

294.
पुरषारथ बो ही करम
जीतै जको विकार,
निरवरती आतम धरम
परवरती संसार,

295.
गोरख धंधो समझ जे
तू छोड्यो संसार ?
फेर लगायो पंथ रो
क्यां न टंटो लार ?

296.
मोह मुगत मनड़ो हुवै
खिण खिण राख्यां जाग,
थित प्रग बण अभ्यास स्यूं
मतै विणससी राग,

297.
बजर मान नारेळ रै
हिव में करूणा नीर,
पोखै आखी जूण नै
संवेदण री सीर,

298.
निन्दा सुण ज्यावै चिंगर
जस गयां पोगीज,
कठपुतली बो बापड़ो
निज पर नहीं पतीज,

299.
पोथा ढोयां ग्यान रा
कोनी हुवै उजास,
जे तू चावै च्यानणो
निज रो दिवलो चास,

300.
मत इनरयां नै रोस तू
अै जाबक निरदोष,
थारो बेरी अलख मन
बीं रा झींटा कोस,