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हिवड़ै री हूक / राजू सारसर ‘राज’

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सुण
हिवडै़ रा पट खोल
कीं न कीं तो बोल।
सुण, इण अंधारै रो
ओ लांबो मून
इण नै अब तोड़
तूटोडा तांत जोड़।
हिवडै़ रै सागर में
कांकरी मार, लैरां उठा
कोई गैरो सबद सुणा।
बो सारथक साबद
जिण सूं
नवा गीत जाग जावै
अर जूण चाल पड़ै
हिवड़ों खिल जावै
नैणां नवी चमक आवै
इण मांझळ रात में
सुण, काळती किस्सारी री
अडोळ अतूट कूक,
हिवड़ै हबोळा खांवती हूक।
दूजै पतंगा री बतळावण,
बै ई तो करै स्यात
आ बात !
अंधेरो छेटसी तो सरी
पण कठै है उजास ?
पण कोई उपाव आपां जोवां
इण अंधारै सूं लडण सारू
कोई चिणगारी उपजावां
सुण, कीं सोचां आपां
पण सोच सोच
अबोला नीं व्है
उण नै कीं सबद चाईजै।