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अणघड़ री घड़त / राजू सारसर ‘राज’

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कुण घड़ै,
ओ सिलप-सळूणौ
आं अटल परबतां री
गोद मंे
गीतड़ला गांवता
अठखेल्यां करता
कल-कल, छल-छल
मन मौवणां झरणां।
बळ खांवती नागण नदयां।
दूब माथै खिलतौड़ौ
उसा रो बाळपण
तरूणाया रूंखां री
डाळयां माथै
पांखीड़ां रै अनुराग री सरगम।
गळबांथ्यां घाल’र
लैरांवती बेलां
बगतै बटाउ नैं
 देवै झाला।
मदानां रै साथै
अणथक चालता
अै बेकळा-स्तूप
मखमली परस रा
लूंठा नमूना।
अणगिणत तारा
सुरजी चांद रा
सै’जातरी
नवगिरह-पून-पाणी
अगन-अकास
इण खजानैं में
कितरा’क रतन
भरया थका है
हंसतौड़ा पुहुप
तावडौ-छियां
दिनूगौ-दो’पारौ
सिंझ्या
बतावै जीवण रो दरसण।
हे, परकिरती ! थारौ
अजब-गजब
बेजोड़ सिणगार
थारै बिना
जीवण री कळपना
आत्माहीण सरीर भांत।
थूं
ईसर ो बरदान है’क
उण सूं आगलौ आणंद
थारी मै’मारो
वरणन करूं’कै वंदण
थारी गोदी में
आय’र बिसार देवूं
सुरग।