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डर ! / राजू सारसर ‘राज’
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लोगां बिचाळै
पसरग्यौ मेधाबारौ डर
खुटग्यौ विसवास
पगै लागण सारू ई
साम्हीं झुकतां ई
पग खींचै पाछा
इण डर सूं’कै
कठै’ई पगां री
मोचड्यां नीं खींच लेवै
पार कींकर पडै़ली।