भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चरित्र सब चालते हैं / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:38, 9 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=आग का आईना / केदारनाथ अग्रवा...)
चरित्र सब चालते हैं
अपनी चलनी में
सोना निकालने के लिए
मिट्टी निकलती है मिट्टी
- सोने के भाव
- न बिकी
(रचनाकाल : 14.09.1967)