भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 9 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=आग का आईना / केदारनाथ अग्रवा...)
है
क्या नहीं है
समय की चाल में अब
जो अतीत में चल रहे हैं सब
बे-ढब,
दब-दब ?
(रचनाकाल :20.10.1967)