भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आर्ट / संजय आचार्य वरुण
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 25 फ़रवरी 2015 का अवतरण
म्हैं ताश खेलणों
नीं जाणूं, पण
बां रै लारै मण्ड्योड़ा
रंग बिरंगा फोटू
म्हनै घणा भावै।
म्हनै ठा नीं पड़ै
के कूण है बादशाह
कूण बेगम
कूण है चिड़ी
अर किसौ जोकर।
पण, एक बात है
ताश रौ घर म्हैं
सांतरौ बणावूं
सगळा पत्ता जोड़’र
ऊँचो घर।
घर में सब रै सागै
बादशाह अर
बेगम भी हुवै
पण फेर भी
बो घर
हवा रै एक ही’ज
लैरकै सूं
खड़खड़ाय
आय पड़ै नीचै
अर बिखर जावै
सगळा पत्ता
लोप हुय जावै
बादशाह अर बीं रौ महल।
पत्ता री ढिगली
म्हारै आंगणै में
बिखर जावै बेतरतीव
इयां लागै जाणें
कैनवास माथै
ऊंधी-सुंवी
आडी-तिरछी
बुरस मार’र
बणायोड़ौ हुवै कोई
‘मॉडर्न आर्ट’ रौ नमूनौ।