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मेघमाळ (3) / सुमेरसिंह शेखावत

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तिरियां-मिरियां तिरी ताळयां, पोखर पोळांपोळ।
लोरांलोर सजळ नभ-लेर्यो, छांटड़ल्यां री छोळ।
हुळसै मन-हालरियो।
तिरपत हुया तिसाया-पाणी पी पालरियो।।21।।

गांव-गुवाड़ां, अळियां-गळियां, सारा घर सुनसान।
कांकड़-रो’ही कानी-कानी-जा-जा बस्यो जहान
कमतर रै कारणिसै।
अळका जाणै उतरी-अटकी रै आंगणियै।।22।।

हरे घास पर रत मामोल्या-ओपै आज अपार।
धरती दुलहण ओढ़ चूनड़ी-कर्यो जियां सिणगार।
जोबन रूप निखारै,
होडांहोड कोड सूं-आभो मेघ संवारै।।23।।

होळै-होळै ओ आळीड़ा, होलै हळियो हांक।
दिणियर तपै सिखर दोपारी, झुळसै बळद्या झांक।
भभकै भोम भपारां।
धण बरजै-धंधाळू अंग न सेक अंगारां।।24।।

झिलमिल झळकै चांद-जळेरी, जळ-बिरखा रै जोर।
मुळकै करसा, सूण मनावै, हिवड़ै उठै हिलोर।
काळ कळपसी कालै।
टिम-टिम नखत-टमरकां-झाला जळहर झालै।।25।।

हळ थम्यां हाळीड़ा ऊभा, खेजड़लां री छांव।
भतवार्या मारग में भीजै, लारै रहग्यो गांव।
लेवै कठै बसेरो।
साजन जोवै बाट ’क-अेढो दूर घणेरो।।26।।

तिरियां-मिरियां भरी तळायां, छहकै च्यांरूमेर।
ढावा छेक नीर बह चाल्यो, लियो पायतण घेर।
डूबण लागी डेर्या।
अेकमेक मगरै रा-मारग, मिलै न हेर्या।।27।।

ताल-तळायां री ल्हैरां पर -छांटड़ल्यां रो रास।
बण-बण मिटै लगोतर घेरा, मिट-मिट करै बिकास।
पिरवा बीण बजावै।
जाणै सिरजणहार-स्त्रजण रा साज सजावै।।28।।

चोफेरै जीवण चै’चावै, पग-पग प्राण-पड़ाव।
जगंळधर रो ऊदो जाग्यो, ऊंघै सकळ अभाव।
कण-कण करै किलोळां।
पिरवा री पुचकार्या-रिमझिम रूत रमझोळां।।29।।

ऊचै धोरै बैठ गुवाळा, छेड़ै मेघ-मलार।
अळगोजां री धुन पर नाचै, धरती रो सिणगार।
तेजो गावै हाळी ।
मारग बगती रीझे-कामण भोळीभाळी।।30।।