भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेघमाळ (11) / सुमेरसिंह शेखावत

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 25 फ़रवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमेरसिंह शेखावत |संग्रह=मेघमाळ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाजर पाक्या, खेत बुलावै-डूंचणिया री डार।
फळियां तिड़कै, परकत फड़कै-लावणियां मिस लार।
लपकै लोग-लुगाई।
उतग्या जाण अंवेरण-अन-धन तणी उगाई।।101।।

मे’णत रा फळ अन-कण-मोती पळै पसेवां पाण।
आखी जगती रा अन-दाता-कमतरिया किरसाण।
हळधर-स्त्रम-हलकारा
मे’-पाणी-असी-मारां-बेघर झिलै बिचारा।।102।।

घर में करै किलोळां दाळद, भूख पेट नैं खाय।
राज-ब्याज में नाज परायी-हाटां तुल-तुल जाय।
लिछमी, घणी ठगोरी!
घास-फूस रै पाण-गरीबी कटणी दोरी।।103।।

कदे कातरो, कदे रूंखड़ी-करै धान रो नास।
टीडी-दळ आंधी सो उमड़ै, बाकी बचै न घास।
खेचळ बिरथा जावै
पळै परायो पेट, जमानो काळ कहावै।।104।।

जस-कीरत री जूणां जीवै-रूतबै री पत राख।
रगत-पसेवां री रसधारां-सींचै स्त्रम री साख।
करसो खरो कमाऊ।
पाळ पेट पराया, घोटै गळा घराऊ।।105।।

पीळै मुख सूरज पथरायो, पितळायो परभात।
माठै मनां मेघ मुरझाया, बांझ बणी बरसात।
हुळसै आस न हेतां।
बिधना आज बुहारै-खळा करम रै खेतां।।106।।

बिदा-बिदा ले सिधा बादळी, भली न बेसी भीख!
जाचक रो आभार जतावण-समपै मुरधर सीख।
वारे सरद वारणा।
अब तो ओस-असीसां-ठारै रात ठारणा।।107।।