मेघमाळ (11) / सुमेरसिंह शेखावत
बाजर पाक्या, खेत बुलावै-डूंचणिया री डार।
फळियां तिड़कै, परकत फड़कै-लावणियां मिस लार।
लपकै लोग-लुगाई।
उतग्या जाण अंवेरण-अन-धन तणी उगाई।।101।।
मे’णत रा फळ अन-कण-मोती पळै पसेवां पाण।
आखी जगती रा अन-दाता-कमतरिया किरसाण।
हळधर-स्त्रम-हलकारा
मे’-पाणी-असी-मारां-बेघर झिलै बिचारा।।102।।
घर में करै किलोळां दाळद, भूख पेट नैं खाय।
राज-ब्याज में नाज परायी-हाटां तुल-तुल जाय।
लिछमी, घणी ठगोरी!
घास-फूस रै पाण-गरीबी कटणी दोरी।।103।।
कदे कातरो, कदे रूंखड़ी-करै धान रो नास।
टीडी-दळ आंधी सो उमड़ै, बाकी बचै न घास।
खेचळ बिरथा जावै
पळै परायो पेट, जमानो काळ कहावै।।104।।
जस-कीरत री जूणां जीवै-रूतबै री पत राख।
रगत-पसेवां री रसधारां-सींचै स्त्रम री साख।
करसो खरो कमाऊ।
पाळ पेट पराया, घोटै गळा घराऊ।।105।।
पीळै मुख सूरज पथरायो, पितळायो परभात।
माठै मनां मेघ मुरझाया, बांझ बणी बरसात।
हुळसै आस न हेतां।
बिधना आज बुहारै-खळा करम रै खेतां।।106।।
बिदा-बिदा ले सिधा बादळी, भली न बेसी भीख!
जाचक रो आभार जतावण-समपै मुरधर सीख।
वारे सरद वारणा।
अब तो ओस-असीसां-ठारै रात ठारणा।।107।।