जणै जणै भी
ऊमटै है
काळी कळायण
भर भर आवै आभो
बीजळी रा पळकां सूं
दूर कैई खैजड़ै बैठै
मोरियै री प्याओ प्याओ सूं
गूंजै है सिगळौ जंगळ
म्हारो मन भी
बठै भी ऊमटी हुवैला
काळी कळायण
बीजळी रा पळकां सूं
भर आयो हुवैला आभो
जठै म्हैं हुयर भी
नीं हूं
टपकै दो टोपा चुपचाप
रळावै बाळू-रै धौरै मांय
अर मण्डे थारो चितराम
म्हारै हियै जियै
जाणै चीस्याड़ां मारै
सिगळो जंगळ
चीस्याड़ा मारै
सिगळो आभो
कठै है तू म्हारी आत्मा
कठै है तू म्हारी कविता