भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काळिन्दरा री फुंफकारां / वासु आचार्य

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:45, 26 फ़रवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वासु आचार्य |संग्रह=सूको ताळ / वास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लारलै कई दिनां सूं
अठै
नीं ठा आयो गया हुयग्यो
दिन कठै

दिन अर रात मांय
कीं फरक नीं लखावै
जिको सरणाटो रात लावै
बीं सू बत्तो
दिन नै खावै

सूनी सड़कां
बन्द दुकानां
कीड़ी सूं लेय‘र
हाथी तांई
सै साइजम हुयग्या है

मिनख अर मिनखाचारै नै
जीवणो चावणियां
छाती माथै भाठौधर सूयग्या है
गौळां रा धमाका
रै‘रै‘र
चीरता जावै काळजां
खैटरां री खड़खड़ाट
करतीं रै कानां नै सूना

अखबार रेडियो दूरदरसण
जाप करै दिन रात
मिनख रै मरणै रो

औ कैड़ो बगत है ?

जिकेरा पल छिन्न
रगत रै छिंटा सूं
लबालब हुय
काळजा नै करै चालन्या
नीं ठा
कद तांई मिटसी
जानलैवा जैरीला
कालिन्दरां री फुंफकारा

नी ठा कदतांई
हुसी पाधरा
पड़दै रै लारै लुक्यौड़ा
जीवतो मांस
खावणिया
भेड़िया
आदमखोर भेड़िया ?