बो करतौ रै
अक्सर जात्रा
मांय सूं जात्री मन 
था‘कर भी 
नीं थकै सायत 
पा‘ड़-नद्यां-झील्यां‘ई
बी री जात्रा री 
बी रै समचै जीवण री 
हुयगी है अेक गैरी लालसा 
बी रा भायला कम 
पण बड़ाया करणिया 
या फैर निन्दया करणिया घणा है
म्हैं बी रौ भायलो हूं भी
अर नीं भी सायत्
नूंवै आखरां-सबदा रो
धूणो धुखावतौ
भासा रै रूं रूं मथींजतौ 
नूंवै सिरजण रो करतो जाप
ई तपतै मरूथळ रो 
कलमियौ जोगी है बो 
घणीबार बो मनै 
म्हासूं घणौ दूर जावतौ लखावै
अर घणी बार 
रूं रूं सूं बड़तौ म्हारै मांय 
बचपणै रो लगाव 
पाकै कैसां सागै
‘पाक्यौ’ई है औजूतांई 
घणी बार सिंझ्या
गैरी उदास हुय जावै
अर बो ताळ भी 
म्हारै खातर 
जद बो जात्रा माथै हुवै
अेक दिन उफत‘र
तणतणाय
म्हैं कै‘ई दीयौ बींनै
(बौ जाणै-म्हैं घणी बार बड़बड़ाऊ)
क्यूं खावतौ रै गौता 
भटका मारतौ रै 
पा‘ड़ नद्या झील्यां
समद 
बो की नीं बौल्यौ बी घड़ी
खाली दैख्यौ गौर सूं 
बोले-थौड़ो‘ई है
(जद म्हैं झुंझळाऊ)
म्हैं अचाणचक
थमग्यौ म्हारै मांय 
बी री गैरी आंख्यां मांय 
घाल दी आंख्यां 
म्हैं सौच्यौ
उबळतै मरूथळ मांय 
बिरखा री दो बून्द‘ई तौ हुवै 
बी‘री जात्रावां