उडीक धौळै तावड़ै री / वासु आचार्य

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तन्नै लागै
क नीं लागै
मनै ठा नीं
पण लारलै लाम्बै बगत सूं
सूरज सूं घबरावै जी

धौळौ बुराक तावड़ो
रगत बरणो हुय‘र उतरै
थारै तिपड़-म्हारै तिपड़
थारै आँगण-म्हारै आँगण
थारै जी-म्हारै जी

हियै हईड-घणा‘ई उपड़ै
अरथ की निसरै
दिन धौळै रा उल्लू बोले
चिमगादड़ पसरै

च्यांरूमैर लोईन्दै रो
राज गळी गळी
इण हालत मांय
ई बगत रो
बरणन क्या करू
कठै सूं चालू करू
कठै करू खतम
थारै म्हारै आसै पासै
बगत हुयग्यौ साइजम
गिरजा अर कागला मांय
मचगी होडमहोड है
मानखै रो माँस ढौवण
अै बणग्या जाणै ओड है

मन री पीड़-आखरां मांय
आवती डरै
चास्णी री भासा गूँजै
कवि क्या करै

म्हैं जकी भासा मांय
कविता मांडणी चाऊ
बी आखरा री आँख मांय
पीड़ है घणी
धौळै बुराक तावड़ै री
उडीक है घणी

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