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गांव की चिट्ठी / अभिज्ञात

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रोज
मिलों की चिमनियों से
सुबह झरता है, मुट्ठी भर आसमान-बित्ते भर ज़मीन
जीने के लिए
और सो जाता है
सांझ होते ही दारू के अड्डे पर..

पर इसके बावज़ूद नहीं बिसरती
गांव से आयी चिट्ठी
कि पुरानी खपरैलों से
चूता है बखरी में पानी, ओरी की मानिन्द
अपने जोड़े की बांट जोहता है इकलौता बरधा
बछड़ा बेराम हो मर गया
बिसुक गयी है गायो
तीज़ में अबके भी कुछ नही गया
बिटियां के इहां
हुई है थोड़ी सी ही मकई
पाला मार गया गेहूं
पटीदार से फिर हो गयी रंजिश
चल रहा है मोकदमा
मनीयाडर नहीं देता है समय पर डाकमुंशी
नजरा गयी है नन्हकी
उसने जाना अधपके बालों वाली खखार थूकती उम्र में
कि घर सिर्फ़ आंख में रहने की चीज़ है
पत्नी हर बार ज़्यादा उम्र की दिखने वाली औरत
और बच्चे
कौतूहल।