चिट्ठी का जवाब / मक्सीम तांक
जवाब में इतनी छोटी-सी चिट्ठी
गो नोटबुक का आधा पन्ना तक
भरा नहीं जा सका तुमसे
कम पड़ गए थे जैसे आत्मीय शब्द,
शब्द जिनसे यह संसार हमारा
प्राप्त करता है ऊष्मा और आलोक ।
तुम लिख सकती थी मौसम के बारे में
जैसे लिखते हैं लोग अपने मित्रों को
जब उनके पास लिखने को कुछ और नहीं होता,
तुम लिख सकती थी पतझड़ के बारे में
आँगन के रबीनिया के पेड़ के बारे में,
खुले खेतों के ऊपर उड़ते धुएँ
और ठण्डे आकाश पर उड़ते सारसों के बारे में ।
जब तक तुम लिखना पूरा नहीं करतीं
इन्तज़ार करते द्वार पर दस्तक देने वाले,
उबलते रहते पतीले में आलू,
खेलते-खेलते धागों को उलझा देता बिल्ला...
लिख नहीं सकीं तुम फिर भी पूरा पन्ना ।
एक मैं हूँ कि जब बैठता हूँ लिखने
कम पड़ जाते हैं काग़ज़,
छिपानी पड़ती है चुम्बनों की गर्माहट
लिफ़ाफ़े पर डाक-टिकटों के नीचे...