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मैं न टुकड़ों पर गिरा हूँ / रमेश रंजक
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देह में खंजर नुकीला सोच कर
राज की यह बात कहता हूँ ।
बात यह है -- सत्य !
टकराने लगा है त्रासदी से
त्रासदी टकरा रही है आदमी से
आदमी मैंने बचाया हर तरह से
इसलिए तकलीफ़ सहता हूँ ।
मार अपनी आत्मा को
मैं न टुकड़ों पर गिरा हूँ
इसलिए कुछ कह रहे हैं सिरफिरा हूँ
दे धता !
मौक़ा परस्तों की
सरहदों से दूर रहता हूँ ।