Last modified on 16 मार्च 2015, at 15:00

काल की चिन्ता न कर / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:00, 16 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=धरती का आयतन / रम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जो जहाँ तक मानते हैं, मान लें
मानना सब कुछ नहीं है, जान लें ।

जो सुखनवर मान के मोहताज हैं
वे न सूरजमुखी कल हैं — आज हैं
आज में जो तात्कालिक भाव है
भाव में जो त्रासदी टकराव है
वे अगर उस मार्ग को पहचान लें
काल को भी जीत लेंगे — ठान लें ।

काल का बल सिर्फ़ भौतिक दायरा
काव्य — गर है काव्य तो कंचन खरा
है खरापन पास जिसके वह अमर
ऐ सुखनवर ! काल की चिन्ता न कर
काल को जो एक दिन का मान ले
पीढ़ियों तक काल से सम्मान ले ।