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जुड़े करोड़ों से / रमेश रंजक

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रत्ती भर भी मोह नहीं है
छूटे मोड़ों से
तुमसे टूटे, रहे अकेले
जुड़े करोड़ों से ।

मौसम ने अपने रंगों से
जो कुछ लिखा-पढ़ा
जब-जब अन्धकार गहराया
फाड़ दिया जबड़ा

काफ़ी दूरी रखी
कहकहे बाज हँसोड़ों से ।

फाट नदी का जैसे फैले
वैसे फैल गए
जुड़े कथा में दुबले-पतले
क्षेपक नए-नए

... जीवन महाकाव्य
होता है पथ के रोड़ों से ।