भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बन्दर जी ने सोची ब्याह की / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:05, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> बन्दर ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बन्दर जी ने देखी बन्दरिया
सोचा ब्याह रचाऊँ
बोला, गाजा-बाजा लेकर
बरात अपनी लाऊँ ।
बोली बन्दरिया स्वागत सबका
धूमधाम से आओ
बिना दहेज गर करोगे शादी
दुल्हन मुझको पाओ ।।