भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सफ़ाई की सौगन्ध / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:14, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> आओ हम स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ हम सब करें सफ़ाई
रलमिल सारे बहना भाई

तन की मन की आस-पास की
इधर-उधर की आम खास की
जगह-जगह जो लग गए जाले
उनकी है अब शामत आई ।

गर हम सारे रखें सफ़ाई
कण-कण की यदि करें धुलाई
फिर सारे नीरोग रहेंगे
बीमारी में लगे न पाई ।

पहला सुख नीरोगी काया
विद्वानों ने बात बताई
नित्य कर्म से जोड़ेंगे नाता
सबने मिल सौगन्ध है खाई ।