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आँखों की उदासी और एक सफ़र की तफ़सील / येहूदा आमिखाई

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एक अंधेरी याद है

जिस पर चीनी के बूरे की तरह बिखरा हुआ है

खेलते हुए बच्चों का शोर वहाँ


वहाँ वे चीज़ें हैं

जो दुबारा कभी नहीं बचायेंगी तुम्हें

और वहीं

मक़बरों से ज़्यादा मज़बूत वे दरवाज़ें हैं


वहाँ एक सुरीली धुन है

जैसी कि काहिरा के मादी में

उन चीज़ों के वादे के साथ जिन्हें इस वक़्त की ख़ामोशी

नसों के भीतर ही

रोके रहने की कोशिश करती है


और वहाँ एक जगह है

जहाँ तुम दुबारा कभी नहीं लौट सकते

दिन के वक़्त

एक पेड़ छुपाता है इसे

रात के वक़्त

एक लैंप की रोशनी चमकाती है


मैं इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं कह सकता

मैं इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं जानता


भूलने और ख़ुश होने के लिए

ख़ुश होने और भूलने के लिए

इतना ही बहुत है


बाकी तो सब आँखों की उदासी है

और एक सफ़र की तफ़सील !