भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भजन / चन्द्रमणि

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 21 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रमणि |संग्रह=रहिजो हमरे गाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरि हे ! लैह शरण बिलमाय।
पाथर चुनि चुनि महल बनाओल
माथा धुनि-धुनि कउड़ी कमाओल
कंचन काया तों निरमओलह
से गेलहुँ बिसराय।। हरि हे ....

सुखक समय बस सुखक सेहन्ता
दुःखकेर क्षण सम्बल भगवन्ता
सबदिन मन रहलै बौरएले
जगसँ गेलहुँ अघाय।। हरि हे .....

जाएब ककर शरण तजि तोहर
अधम पतित प्रभु-नाम धरोहर
जौं पापी तइयो सुत तोहरे
से सुनि एलहुँ नुकाय।। हरि हे .....

मन मन्दिर मे चोर समाओल
ससरि मनोरथ छलबल आओल,
दिन-दिन तपबल-हीन ‘चन्द्रमणि’
शरणागत निरूपाय।। हरि हे ......