भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दियमान बढ़ि गेल / चन्द्रमणि
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 21 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रमणि |संग्रह=रहिजो हमरे गाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भैया मिथिलाके मान आसमान चढ़ि गेल
अहाँ मैथिल छी, बुझू दियमान बढ़ि गेल
जगदम्बा धिया मिथिला के
भू-तनया जनक नृप अंगना
जगबंदित जगत केर मालिक
से रामे हमर छथि पहुना
संतोषक महासागर हम
कनिन्जेमे काटब दिन कहुना
बिनु मंगनहि अयाचीक गुमान रहि गेल
अहाँ मैथिल छी.....
सिरमामे जनिक गिरिराजे
नूआ छन्हि सुरसरि गंगा
पच्छिमे बुद्धक उपवन
पूरममे पावन बंगा
आँचर कोशी केर धारा
एतऽ भोरक सुरूज सतरंगा
देखु मिथिलाकेर मुरूत महान वनि गेल।
अहाँ मैथिल छी.....
स्वर्गक मधुवन ई मिथिला
अनुरागक बहइछ सरिता
विद्याक भारती आगरि
ओहो मिथिले केर बनिता
शिव-शंभु बनल छथि उगना
सुनि कवि कोकिल केर कविता
ऐठाँ घर-घर पिकबैनीके तान भरि गेल
अहाँ मैथिल छी, बुझू दियमान बढ़ि गेल।