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गजल (2) / चन्द्रमणि

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अहाँ शहदहिके शशि शीतल
सोहाओन शान्त सुखकारी
मदन मन मारि ने सकता
निरखिते रूप मधुनारी।
पहिल भोरक सुरूज सन लाल
लागय भाल पर बिदिंया
प्रभा पुनमके आननमे
चोरओन चानकेर निनिया
चिहुकि चातक कोनो चितवन
चाहय सान्निधय सुकुमारी।
सुमन तूबय सिंगरहारक
अधर-पट हामसे फूजय
सुधा सन स्वर, सुभाषिनी
जेना प्रभु भासमे पूजय
निशारानी रभसि अयली
लऽ प्रेमक पुष्प भरि थारी।
चलल पनिघटकें कटि घट लऽ
झुनुर झुन पायलक झंकार
अपन चाहककें प्रीतक पान लय
सगरो नगरकें हकार
एहन केर संग जे पाओत
महाभागे वा अवतारी।
मदन मन मारि ने सकता निरखिते
रूप मधु नारी।