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प्रस्तावना

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अभिज्ञात की कविताओं में विचार और संवेदना की तन्मय जुगलबंदी देखी जा सकती है। विचारों में संवेदना और संवेदना में विचार का योग इन्हें अपनी पीढ़ी के समकालीन कवियों से अलग और विशिष्ट करता है। आज शुद्ध वैचारिक धरातल पर आधारित जीवन आदमी को उसकी आदमीयत से क्रमशः च्युत करते जाने के ख़तरों से बरी नहीं है, तो एकांगी संवेदनशीलता के तहत समाज को एक ऐसी व्यवस्था देने का समर्थन करना है, जो ठोस वास्तविकताओं की वैज्ञानिकता से इनकार कर सकता है।

इस दृष्टि से अभिज्ञात का होना हिन्दी कविता के लिए सुखद आश्वासन है। प्रस्तुत कृति की मूल समस्या तलाक, आज इक्के-दुक्कों की समस्या नहीं है। पारिवारिक विघटन और तनाव नये बौद्धिक समाज की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। इसकी एक ऐसी सूक्ष्म-संवेद्य पड़ताल यहां सहज उपलब्ध है, जो आपके आस-पास या आप बीती लग सकती है। शिल्प का एक लगभग नया सा, लयात्मक प्रयोग आकृष्ट करता है और कथात्मकता भी।