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खण्डः दो / पुरुष

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एक
विवाह के पूर्व मेरे जीवन में वो थी
उसे स्थापित करने का तुम्हारा प्रयास अनूठा था।
क्या पति-पत्नी का रिश्ता झूठा था!!

दो
घर ऐसे ही चलता है
काश कि तुम एक परम्परागत पत्नी की तरह
मुझे ताने देती।
उसे कुलच्छिनी कह आड़े हाथों लेती।।

तीन
मुझे उससे प्यार है/था
जिस दिन से तुमने ये सिद्ध किया/कराया।
बस, मैं हो गया पराया।।

चार
जबकि यह स्पष्ट है, मेरा हृदय उसकी प्रीति में
विकल था।
तुम्हारी दृष्टि में
तुम्हारे साथ मेरा मोह, मात्र एक छल था।।

पांच
एक अनुबंध कि सामाजिक दृष्टि के परे तुम
मेरी कोई नहीं
मैं तुमसे भागता रहा।
कहीं तुम्हें चाहने न लगूं, नियति से मांगता रहा।।

छः
संधि विच्छेद पत्र पर हस्ताक्षर के पश्चात
तुमने दी मुझे बधाई।
और मैंने तुम्हारे तकिये के गिलाफ़ से निकाल
बाशबेसिंग में डाल दी, तुम्हारे सिरदर्द की दवाई।।

सात
मुन्ने को तुम ले गयी, उस पर है ही क्या मेरा अधिकार।
शायद तुम ठीक कहती हो, वह है
मेरे प्रवंचक प्रेम का विस्तार।।

आठ
जबसे तुम घर से गयी, वो मुझे बहुत खलती है।
तुम्हारी स्मृति साथ-साथ
घूमती टहलती है।।

नौ
हां अब भी, बिना नींद के, सुबह चढ़ी धूप तक
सोता हूं।
घर में
तुम्हारे होने का भ्रम जो पाले होता हूं।।

दस
तुम्हारा पसंदीदा गॉगल यहीं रह गया
शायद कड़ी धूप भी यहीं रह गयी।
तुम्हें जो कुछ कहना था-सब यों कह गयी।।

ग्यारह
अरसे बाद, ज्यों का त्यों देखकर भरमा जाती।
अच्छा है, तुम क्षण भर को भी
अपने घर नहीं आती।।

बारह
उस कमरे में जहां टूटी पड़ी होती थीं,
मेरी प्रतीक्षा में
करवटें बदलते बदलते तुम्हारी चूड़ियां।
आजकल हैं सिगरेट के जले-बुझे टुकड़े
माचिस की कलमुंही तीलियां।।

तेरह
अख़बार, चादरें, कलेण्डर, सब पर लिख बैठा हूं
हर चीज़ देगी बता।
तुम्हारा वर्तमान फ़ोन नम्बर, तुम्हारे घर का पता।।

चौदह
मैंने-तूने, सिर्फ़ मैंने या सिर्फ़ तूने, जो कुछ किया
भोगा।
मगर मेरे-तेरे नाम खुदे विवाह के दौरान मिले
बर्तनों का क्या होगा!!

पंद्रह
चूंकि में उसका हूं, इसलिए तुम्हारा नहीं हो सकता
तुमने माना, मनवाया।
किन्तु तुमने, उसने, मैंने आख़िर क्या पाया?

सोलह
मुन्ना तो अब पढ़ता होगा।
दुलारयुक्त पापा की छवि
क्या अपने लिए ही गढ़ता होगा।।

सत्रह
अब तुम्हारी कामना।
भीड़ग्रस्त शहर में
कटी पतंग थामना।।

अठारह
अब मिसअण्डरस्टैंडिंग नहीं होगी
कि तुम भूले से पढ़ने लगोगी अपने बदले
मेरी आधी पढ़ी हुई नॉवेल।
और मैं बाथरूम में घुस जाऊंगा
लेकर तुम्हारा टॉवेल।।

उन्नीस
इसे तुम पहली शापिंग में ख़रीद लायी थी
अब तुम्हारे अभाव में दीवारघड़ी का पेण्डुलम
नहीं हिलता।
लोग जब टोकते हैं तो मैं व्यस्तता ओढ़कर कहता हूं
क्या करूं, समय नहीं मिलता।।

बीस
सोचता हूं कि आओगी तो कैसे कर पाऊंगा
तुम्हारा सामना।
यों
आज पुनः निरस्त तुम्हारी आगमन संभावना।।

एक्कीस
भाभी मज़े में तो है, जब कोई समवयस्क
औपचारिकतावश पूछता है
मैं मुस्कुरा भर देता हूं, सच एकबारगी
कुछ नहीं सूझता है।।

बाईस
तुम्हारे प्यार का भागी नहीं ही हो पाय
किन्तु पायी है कुछ कुछ हमदर्दी।
वरन् नौकर तो नौकर हैं
तुम्हारी तरह बेरूखी से भी कभी नहीं कहते
कि कुछ पहन ओढ़ लो-वरना हो जायेगी सर्दी।।

तेईस
काश ऐसा होता कि मैं रिक्शे में काटता
मौका पा चिकोटी।
तुम यों हतप्रभ रह जाती जैसे
संयुक्त परिवार वाली नयी नवेली दुल्हन से
दाल में नमक ज़्याद पड़ गया हो
अथवा जल गयी हो रोटी।।

चौबीस
स्पप्न सा देखता हूं
कि हम आवश्यक महसूस करने लगे हैं
एक दूसरे की राय।
जब मैं ले आता हूं तुम्हारे पसंद की साड़ी
और तुम बनाती हो चाय।।