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बुख़ार / वीरेन डंगवाल

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मेरी नींद में अपना गरम थूथन डाले

पानी पीती थी एक भैंस ।


मैं पकता

हवा से सिहरते गेहूँ की तरह

धूप के खेत में ।

नींद सा कुछ दबाता

पलकों को


कलेजे को दबाती

एक मसोस ।