Last modified on 30 मार्च 2015, at 11:46

श्वेतवस्त्रावृता शारदा, ज्ञान दीं / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 30 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग' |संग्रह= }} {{KKCatBho...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

श्वेतवस्त्रावृता शारदा, ज्ञान दीं
एह नादान पर भी तनिक ध्यान दीं

घिर गइल बा अन्हारा में हर आदमी
ज्योति भीतर जला नीक पहचान दीं

काल के भाल पर धवल रौशनी
माँ, भरतभूमि के विश्‍व में मान दीं

स्वार्थ के ताप से मत तपे ई जगत्
त्याग के नीक चादर नवल तान दीं

हम गहीले चरन, शुद्ध हो आचरन
ज्ञान दीं, मान दीं, विज्ञ सन्तान दीं