छनो भर साथ मिल जाई / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 30 मार्च 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

छनो भर साथ मिल जाई
हिया के फूल खिल जाई

मिली जब ताप आँसू के
पहाड़ो तक पिघल जाई

मशक्कत में बड़ा ताकत
हिमालय तक ले हिल जाई

सही, बुजदिल कबो कहिहें ?
जुबाँ ओठे में सिल जाई

अगर मन-अश्‍व अनियंत्रित
तब केहू प दिल जाई

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.