भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घुट-घुट मरत बा आदमी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 30 मार्च 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घुट-घुट मरत बा आदमी
गलती करत बा आदमी

हैवानियत में जी रहल
कहवाँ डरत बा आदमी

कबहीं कली, फिर फूल बन
सूखत-झरत बा आदमी

तिल-तिल दिया के टेम अस
बूतत-बरत बा आदमी

आबाद आपन खेत रख
अनकर चरत बा आदमी

लेलस कबो करजा, उहे
रोजो भरत बा आदमी

सबके खुशी देखत दुखी
होके जरत बा आदमी