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घुट-घुट मरत बा आदमी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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घुट-घुट मरत बा आदमी
गलती करत बा आदमी

हैवानियत में जी रहल
कहवाँ डरत बा आदमी

कबहीं कली, फिर फूल बन
सूखत-झरत बा आदमी

तिल-तिल दिया के टेम अस
बूतत-बरत बा आदमी

आबाद आपन खेत रख
अनकर चरत बा आदमी

लेलस कबो करजा, उहे
रोजो भरत बा आदमी

सबके खुशी देखत दुखी
होके जरत बा आदमी