भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग समय के गुलाम बाटे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:34, 30 मार्च 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोग समय के गुलाम बाटे
केहू कसले लगाम बाटे

अझुराइल बा सभे इहाँ के
ऊपर मन से सलाम बाटे

खाते-पियते इहाँ-उहाँ में
सबके जिनगी तमाम बाटे

भीतर करिया जमा भइल बा
बाहर धप्-धप् त चाम बाटे

रावन मन में बसल तबहुँओ
मुँह से सुमिरत ई राम बाटे