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श्रेष्ठ कवि-बानी रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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श्रेष्ठ कवि-बानि रहल
ओ के ना शानी रहल

मन के रेगिस्तान में
प्रेम बेपानी रहल

धूर्त लोगन के इहाँ
रोज बा चानी रहल

आज सेवा-भावना
व्यर्थ बेमानी रहल

लोग के नेकी कइल
हाय, नादानी रहल

कम पढ़ल पुरखा सभे
योग्य आ ज्ञानी रहल