भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय के सिरहाने / राजेश्वर वशिष्ठ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:31, 30 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश्वर वशिष्ठ |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी बच्चे की तरह बैठा हूँ
स्कूल की सीढ़ियों पर
पलट रहा हूँ नोटबुक के पन्ने
जिसमें लिखी हैं
दुःख और विस्मय की
अनुभूत परिभाषाएँ ।

वर्षों में सीख पाया हूँ बस इतना ही ।

कुछ नया सीखने की अब
कोई सम्भावना नहीं
कुछ नहीं बदलता
जीवन के स्थाई भाव में ।

पता नहीं कब बजेगी
छुट्टी की घंटी ?
बहुत उचाट है मन !