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तूतनख़ामेन के लिए-17 / सुधीर सक्सेना
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ज़िन्दगी दिया नहीं होती
तूतनखामेन
कि बुझ जाए तो फिर से बाल लो,
ज़िन्दगी कड़ी नहीं होती
तूतन
कि टूट जाए तो फिर से जोड़ लो
ज़िन्दगी क़लम नहीं है कोई
कि फिर से रोप लो
वक़्त के होठों से फूटा कोमल राग है ज़िन्दगी
कि एक बार डोर टूटी तो
महीन से महीन गाँठ भी
उसे जोड़ नहीं सकती फिर से
उसे छेड़ना ही पड़ता है फिर से
नए रूप और नए रंग में
डाल पर विकसी लरजती पंखुड़ी है ज़िन्दगी
कि एक बार झरी
तो उसे फिर से जोड़ा नहीं जा सकता
वृन्त से
एक ही चोले में
एक से ज़्यादा बार
खेला नहीं जा सकता मंच पर
ज़िन्दगी का खेल ।