भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं हूँ अपराधी किस प्रकार / गोपालशरण सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:07, 2 अप्रैल 2015 का अवतरण
मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?
सुन कर प्राणों के प्रेम – गीत,
निज कंपित अधरों से सभीत।
मैंने पूछा था एक बार,
है कितना मुझसे तुम्हें प्यार?
मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?
हो गये विश्व के नयन लाल,
कंप गया धरातल भी विशाल।
अधरों में मधु – प्रेमोपहार,
कर लिया स्पर्श था एक बार।
मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?
कर उठे गगन में मेघ धोष,
जग ने भी मुझको दिया दोष।
सपने में केवल एक बार,
कर ली थी मैंने आँख चार।
मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?