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तूतनख़ामेन के लिए-24 / सुधीर सक्सेना
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मुबारक हो,
कि ख़ूब सोए तुम
तूतन !
गो सोए थे जागने के वास्ते
मुबारक हो
कि हो-हल्ले
और कुदाल, फावड़ों की आवाज़ से भी
नहीं उठे तुम
तुम तूतनखामेन !
मुबारक हो
कि चीर-फाड़ भी
तोड़ नहीं सकी
तुम्हारी नींद
अब क्या ख़ाक जागोगे तुम
फ़िक्र हो
ज़िन्दगी की
तो एक हल्की-सी आहट से
जाग जाया करते हैं
आदमी ।