मिलनक अधिकार / प्रवीण काश्यप
लग रहियो कऽ कतेक दूर
भऽ जाइत छी अहाँ?
हमर-अहाँक बीच अछि
नामे मात्र शून्य क्षेत्र;
कखनहुँ-कखनहुँ एकर एकाइ
कतेक पैघ भऽ जाइत अछि!
कहियो अहाँक नयन पढ़बाक,
ओहिमे डूब देबाक उत्सुकता छल;
मुदा नोरक गंगोत्री सन जमल
नीरव भऽ गेल अछि आब अहाँक नयन,
जकर नित्-प्रतिक्षण सुखाइत सोत
कहियो मौन भऽ जायत।
हमर अहाँक प्रेमक गंगा
समाजक पुलिसिया खोजी लोक
आ धर्म ओ संस्कृतिक बीड़ा उठौने
मठाधीश सभ सोखि रहल छथि!
हमर-अहाँक बीच मात्र शून्य क्षेत्र नहि
किछु धर्माजीवी लोकक
अस्मिताक प्रश्न सेहो अछि
मुँह बौने ठाढ़, हमरा अहाँ केँ गीरऽ लेल।
कखनहुँ विराम लेबाक अधिकार
नहि अछि अपना सभ केँ ?
कियैक नहि भेटैत अछि,
कनियो कालक अवकाश?
की ऐकांतिक साधना-मिलनक अधिकार
मात्र नपुंसक देवता सभ केँ छन्हि?
वा विशेष कोटि में होयबाक लाभ
हुनका सभ केँ आरक्षण में भेटल छन्हि?
सामन्य लोक सभ मात्र दौड़ैत-भागैत रहत?
अपन अस्तित्व बचाबऽ लेल रहत सदैव तत्पर?
कष्टार्जित प्रेम, शाश्वत ज्ञान
की एहि लेल तपोवन सभक
आगि-माटि-पानि करैत
किछु अग्रज मनुज लोकनि
साधना कयलन्हि मंत्र देखबाक?
की एहि दिनक लेल?
कि सभ मंत्र, आप्त वचन
मात्र तंत्र केँ समर्पित कऽ देल जाय?
हमर प्रेम समाप्त भऽ जाय
किछु पाशविक प्रवृतिक संकर नश्लक कारण?
ललाएल जीह ओ रक्तिम चक्षु सँ
जो चाटऽ चाहैत अछि हमर शिवा केँ?
ई ललाओन आँखि सभ मत भेल अछि
कतेको प्रेमक रक्तपान कऽ केँ !
अस्थिशेष तऽ नहि ने भऽ जायब अहाँ?
नहि ने होयब माँसविहीना हमर शिवा?
सुखायत तऽ नहि ने कहियो गंगोत्री-यमुनोत्री?
हम निरन्तर, क्षण-प्रतिक्षण चुभकऽ
चाहैत छी अहाँक नयन सिंधुमे।
आत्म-उद्धार लेल आवश्यक अछि प्रेम
दूरी सँ विनाश, मिलन सँ अछि क्षेम!