Last modified on 5 अप्रैल 2015, at 16:19

संसार किसका है / श्रीनाथ सिंह

Dhirendra Asthana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 5 अप्रैल 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिसने बात न की तारों से,
जब रहती है दुनिया सोती।
जिसने प्रातः काल न देखा,
हरी घास पर बिखरे मोती।
घटा घनों की , छटा वनों की,
जिसने चित्त से दिया उतार।
उसके लिये अँधेरा जग है,
उसकी ऑंखें हैं बेकार।
छोटे से छोटे प्राणी का घर,
जिसने देखा भाला।
भेदभाव से भरा नहीं जो,
प्रिय न जिसे कुंजी ताला।
फूलों सा जो हँसता हरदम,
क्यों न आ पड़े विपत हजार।
वह इस दुनियां का राजा है,
उसका ही है यह संसार।