Last modified on 5 अप्रैल 2015, at 16:28

माता का लाल / श्रीनाथ सिंह

Dhirendra Asthana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:28, 5 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दीन दुखी जन की पुकार पर,
जो नित कदम बढ़ाता है।
भूखा देख साथियों को निज,
जो भूखा रह जाता है।
अन्धों को मौका पड़ने पर,
जो ऊँगली पकड़ाता है।
रोती ऑंखें देख आंख में,
जिसके जल भर आता है।
जो न कभी भय खाता है,
खड़ा क्यों न हो समुक्ख काल।
कहलाता है वही जगत में,
दयामयी माता का लाल।