Last modified on 9 अप्रैल 2015, at 14:08

हथेलियों की छाप / किरण मिश्रा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 9 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुमने जो फूल मेरे बालो में टाँका था
वो कल रात न जाने कैसे
उस डायरी से गिर गया
जिसपे तुमने,
मेरी तुम्हारी हथेलियों की छाप ली थी

मेरी हथेली की छाप तो तुम ले गए
लेकिन अपनी महक उस हरसिंगार पर छोड़ गए
जहाँ मैंने बदली से निकलते चाँद देख कर,
तुम्हारे पहलू में अपना चेहरा छिपा लिया था
और तुमने हौले से मेरा माथा चूम लिया था

उस एहसास को मैं अपने साथ ले आई
लेकिन दिल उसी हरसिंगार पर छोड़ आई
जो आज भी वहीं टंगा है ।