भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहम् ब्रह्मास्मि / किरण मिश्रा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 13 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जैसे आत्माएँ दबी हो आकाँक्षाओं में
और कामनाएँ अपने नुकीले नाख़ूनों से
फाड़ रही हों बुद्ध के साधन चातुष्टय को
माया डोर ले हाथों में
बना कर कठपुतली
दिग्भ्रमित करती है दुनिया के पथिक को
भ्रमित पथिक कहाँ सुन पाता है
आत्मा की वेदना और कहाँ देख पाता है
माया के खेल को
वो मगन रहता है अहम् ब्रह्मास्मि में