भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम / भजन

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:14, 15 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKBhaktiKavya |रचनाकार= }} हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम ।<br> तू क्यों सोचे बंदे सब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार:                  

हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम ।
तू क्यों सोचे बंदे सब की सोचे राम ॥

दीपक ले के हाथ में सतगुरु राह दिखाये ।
पर मन मूरख बावरा आप अँधेरे जाए ॥

पाप पुण्य और भले बुरे की वो ही करता तोल ।
ये सौदे नहीं जगत हाट के तू क्या जाने मोल ॥

जैसा जिस का काम पाता वैसे दाम ।
तू क्यों सोचे बंदे सब की सोचे राम ॥