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सृजन के जीन / किरण मिश्रा

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प्रेम की भाषा, अपनत्व के छन्द
सुकून के पल,
मैंने जमा कर के रख लिए है

ये सोच कर
तकनीकी के बाज़ार में इनकी जरूरत किसे
आने वाला कल एण्टी-एजिंग साइंस का है

ये मैं रख जाऊँगी उन पीढ़ियों के लिए जो
आधे मशीन बने असन्तुष्ट अवसाद में घिरे
खोज रहे होंगे सन्तुष्टि और सृजन के जीन को